Monday, September 19, 2011

दिल में एक लहर सी उठीं है अभी----Ghulam Ali

दिल में एक लहर सी उट्ठी है अभी (२)
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
दिल में एक लहर सी उट्ठी है अभी

शोर बरपा है खाना-इ-दिल में(२)
कोई दीवार सी गिरी है अभी (२)
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
दिल में एक लहर सी उट्ठी है अभी

कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी (२)
और ये छोटे भी नयी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
दिल में एक लहर सी उट्ठी है अभी

याद के बे-निशाँ जज़ीरों से(२)
तेरी आवाज़ आ रही है अभी(२)
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
दिल में एक लहर सी उट्ठी है


शहर की बे-चराघ गलियों में(३)
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
दिल में एक लहर सी उट्ठी है अभी


*********
नासिर काज़मी*************
दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अहि

शोर बरपा है खाना-इ-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी

भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी

तू शरीक-इ-सुखन नहीं है तो किया
हम सुखन तेरी ख़ामोशी है अभी

याद क बे निशान जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी

शेहेर की बे चारघ गलियों में
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी

वक़्त अच भी आये गा नासिर...
घूम न केर ज़िन्दगी पढ़ी है अभी...!!

3 comments:

Unknown said...

Liked your blog very much

Unknown said...

सो गए लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी

Unknown said...

शहर की बे-चराग गलियों में
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी

वक़्त अच्छा भी आएगा नासिर
ग़म न कर , ज़िन्दगी पड़ी है अभी

सो गए लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी