दिल में एक लहर सी उट्ठी है अभी (२)
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
दिल में एक लहर सी उट्ठी है अभी
शोर बरपा है खाना-इ-दिल में(२)
कोई दीवार सी गिरी है अभी (२)
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
दिल में एक लहर सी उट्ठी है अभी
कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी (२)
और ये छोटे भी नयी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
दिल में एक लहर सी उट्ठी है अभी
याद के बे-निशाँ जज़ीरों से(२)
तेरी आवाज़ आ रही है अभी(२)
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
दिल में एक लहर सी उट्ठी है
शहर की बे-चराघ गलियों में(३)
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
दिल में एक लहर सी उट्ठी है अभी
*********नासिर काज़मी*************
दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अहि
शोर बरपा है खाना-इ-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी
भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी
तू शरीक-इ-सुखन नहीं है तो किया
हम सुखन तेरी ख़ामोशी है अभी
याद क बे निशान जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी
शेहेर की बे चारघ गलियों में
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी
वक़्त अच भी आये गा नासिर...
घूम न केर ज़िन्दगी पढ़ी है अभी...!!
Monday, September 19, 2011
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3 comments:
Liked your blog very much
सो गए लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी
शहर की बे-चराग गलियों में
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी
वक़्त अच्छा भी आएगा नासिर
ग़म न कर , ज़िन्दगी पड़ी है अभी
सो गए लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी
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