Thursday, September 18, 2008

urdu poem



दोस्तों की शिकायत करून में
यह भी मुझ को गवारा नही है

सूच केर बेवफा मुझ को कहियेः
धुल न जा'आय भरम आप का ही
आजमाया है दुन्या को में नै
आप ने मुझ को परखा नही है

हो के बेताब मय्यत पे मेरी
तुम यह कियूं बेनकाब आ गए हो
उम्र भर जिस से पर्दः किया था
आज कियूं उस से पर्दः नही है

आप हूँ गे वाफऊँ के माँ'इल
एक दिन यह हकीक़त है लेकिन
आप का तो भरोसा है मुझ को
जिंदगी का भारूसा नही है

जिद न केर आज तो घूँट पे ले
जिंदगी चार दिन के है पे ले
मोहतसिब अपनी किस्मत बना ले
मैकदा है यह का'बा नही है

शबाब आया किसी गुल पैर फ़िदा होने का वक्त आया
मेरी दुन्या में बंदे क खुदा होने का वक्त आया
उन्हें देखा तो जाहिद नै कहा, ईमान की येः है
क उब इंसान वोह सजदा राव होने का वक्त आया

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