१. हजारों ख्वाहिशें 'एईसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले
बोहोत निकले मेरे अरमान लेकिन फ़िर भी कम निकले
२. डरे क्यूं मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून, जो चश्म-ऐ-तर से 'उम्र भर यूँ दम_बा_दम निकले
[ KHooN = blood, chashm = eye, tar = wet, dam_ba_dam = continously ]
३. निकलना खुल्द से आदम का सुनते आयें हैं लेकिन
बोहोत बे_आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
[ KHuld = heaven, be_aabaru = disgrace, koocha = street ]
४. भरम खुल जाए जालिम तेरे कामत की दराजी का
अगर इस तुर्रा-ऐ-पुर_पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
[ दराजी = length/delay, कामत = स्तातुरे, तुर्रा = अन ओरनामेंटल
tassel worn in the turban, pech-o-KHam = curls in the
hair/complexity ]
५. मगर लिखवाये कोई उसको ख़त, तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले
६. हुई इस दौर में मंसूब मुझसे बाद_आशामी
फ़िर आया वो ज़माना, जो जहाँ से जाम-ऐ-जम निकले
[ मंसूब = असोसिएशन, बाद_आशामी = असोसिएशन विथ
drinking ]
७. हुई जिनसे तवक्को खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी जियादा खस्ता-ऐ-तेघ-ऐ-सितम निकले
[ tavaqqo = expectation, KHastagee = weakness, daad = justice,
KHasta = broken/sick/injured, teGH = sword, sitam = cruelity ]
८. मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
९. ज़रा कर जोर सीने पर की तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले
१०. खुदा के वास्ते परदा न काबे से उठा जालिम
कहीं 'एइसा न हो यान भी वोही काफिर सनम निकले
११. कहाँ मैखाने का दरवाजा 'घलिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले
[ वाइज़ = प्रेअचेर/अद्विसर ]
Wednesday, November 19, 2008
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1 comment:
Santoshbhai...
What an outstanding site you've built.
I'm in awe with the "Khazana" you've provided.
Please continue updating it.
And thank you very much for all your hard work in providing this poetic legacy.
God Bless!
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